लेखनी कविता -मैं यह सोचकर उसके दर से उठा था - कैफ़ी आज़मी

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मैं यह सोचकर उसके दर से उठा था / कैफ़ी आज़मी पशेमानी[1] मैं यह सोचकर उसके दर से उठा था कि वह रोक लेगी मना लेगी मुझको । हवाओं में लहराता ...

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